कहते हैं परिस्थितियां कितनी भी कठिन क्यों न हो अगर मनुष्य के मन कुछ कर दिखाए का दृण संकल्प हो तो कोई भी सपना बड़ा नहीं होता है . अपने मन में अगर ठान लिया जाये तो कोई भी काम मुश्किल नहीं होता है । ऐसा ही कुछ कर दिखाया है अल्मोड़ा के दाड़िमी (जैती) के रहने वाले सुन्दर सिंह बोरा के ने। घर के कठिन हालातों में भी उन्होंने हार नहीं मानी ।
उन्होंने अपने सेना में शामिल होने के सपने को सच किया । आपको बता दें बचपन से सुन्दर सिंह ने ने काफो संघर्ष पूर्ण जीवन जिया । 5 वर्ष की आयु में पिता का साथ छूट गया । उन्होंने अपनी माँ के साथ मिलकर कठिन मेहनत और लगन से से सेना में लेफ्टिनेंट का पद प्राप्त किया ।
चुनौतियां का डटकर किया सामना
सुन्दर सिंह बोरा ने अपने जीवन में कई चुनौतियों का सामना किया पिता के जाने के बाद अपनी के साथ देकर हर कठिन परीक्षा को पास किया । आपको बता दें पहाड़ के सुन्दर सिंह बचपन में पैदल प्रतिदिन 6 किमी चलकर विद्यालय तक आते थे। अपनी कमजोर आर्थिक स्थिति के चलते सुंदर के पास पैदल सगळ्णे के अलावा और कोई साधन नहीं था .
वर्ष 2015 में बंगाल इंजीनियर कोर में सिपाही के पद पर उनकी तैनाती हुई । फिर उन्होंने 2018 में आर्मी कैडेट कॉलेज में 3 वर्ष व् 1 वर्ष आईएमए की पढ़ाई की . उसके बाद अब उन्हें पैराशूट रेजीमेंट में लेफ्टिनेंट के पद चुना गया है और अभी उनकी तैनाती बेंगलुरु में हुई है।
सिपाही से पहुंचे लेफ्टिनेंट के पद पर
सूंदर सिंह की प्राथमिक शिक्षा सरस्वती शिशु मंदिर से हुई है उसके बाद वह दसवीं तथा बारहवीं की शिक्षा हाई स्कूल इंटरमीडिएट सर्वोदय इंटर कॉलेज से प्राप्त की है । आपको बता दें सुंदर सिंह बोरा का 2015 में इंजीनियरिंग फील्ड में सिपाही के पद इंडियन आर्मी में चयन हुआ था । उसके बाद उन्होंने कड़ी मेहनत और कड़ी संघर्ष के जरिये लेफ्टिनेंट के पद का सफर तय किया। अपनी लगन के चलते वे आज सिपाही से भारतीय सेना में लेफ्टिनेंट बन गए हैं।
सुन्दर केवल 5 साल के थे जब उनके पिता राजेन्द्र सिंह बोरा का निधन हुआ था । उनकी माँ कलावती ने चार भाई-बहनों को का पालन पोषण अकेले किया। अपने भाई बहन में सबसे छोटे सुंदर बोरा ने आर्मी कैडेट कॉलेज के 69 अफसर कैडेटस में सबसे काबिल अफसर कैडेट रहे हैं। उनकी इस उपलब्धि से उनके परिवार व् आस पास के क्षेत्र में ख़ुशी का माहौल छा गया है।