आप भी ये जानकार हैरान होंगे की आज के समय में भी परियां होती है क्या ? तो हमारा जवाब है , हाँ । आज हम आपको उत्तराखंड के नैनीताल के के ऐसे ही एक परी ताल के बारे में बता रहे हैं जहाँ पूर्णिमा के दिन यहां परियां नहाने आती हैं।
आज हम आपको देवभूमि उत्तराखण्ड के ऐसे ही अद्भुत ताल के बारे में बता रहे हैं . जिसके बारे में काफी लोगों को पता नहीं हैं .कहते हैं उत्तराखंड के पहाड़ लोगों का मन मुँह लेते हैं .
यहाँ एक बार आने वाला हमेशा दोबारा यहाँ आने की ख्वाहिश करता है । उत्तराखंड की धरती खुद मे अनेकों रहस्यों को समेटे हुए है। यहां ऐसी अनेकों ऐसी अनछुई जगहें हैं, जो आज तक सामने नहीं आ सकीं। जिसमे से कैलाश पर्वत का रहस्य भी शामिल है ।
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पूर्णिमा के दिन यहां आती हैं परियां
परी ताल की गिनती उत्तराखंड के सबसे रहस्यमयी तालों में की जाती है। मान्यताओं के अनुसार पूर्णिमा के दिन यहां परियां नहाने आती हैं। इस ताल के आसपास की कुछ काली चट्टानें दिखती हैं।
इन्हें शिलाजीत युक्त चट्टान कहा जाता है। यह एंटी एजिंग के लिए औषधीय तत्वों से युक्त होती हैं जिसकी वजह से उम्र नहीं बढ़ती हैं । इस ताल से सटा एक खूबसूरत सा झरना भी दिखाई देता है, जो इसकी सुंदरता को और निखार देता है।
मान्यताओं के अनुसार परी ताल की असल गहराई का आज तक पता नहीं चल पायी है। इस वजह से इस ताल में स्थानीय लोग अंदर नहीं जाते है । क्योंकि ये ताल परियों का ताल माना जाता है, इसलिए स्थानीय लोग यहां नहाने और डुबकी लगाने से परहेज करते हैं।
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इस वजह से नाम पड़ा परी ताल
मान्यताओं के अनुसार इस ताल में परियों के नहाने के कारण इसका नाम परी ताल पड़ गया । तो अगली बार आप जब भी नैनीताल आएं अपनी लिस्ट में नैनीझील, भीमताल, नौकुचियाताल, हनुमान ताल, सीताताल और कमलताल जैसी झीलों के साथ परी ताल को भी अपनी जरूर शामिल करें।
यकीन मानिए इस जगह की खूबसूरती आपको रोमांचक एहसास से भर देगी, एक ऐसा एहसास जिसे आप जीवन भर भूल नहीं पाएंगे।
नैनीताल शहर से 25 किलोमीटर दूर एक गांव है चाफी। यहां से 3 किमी के पैदल रास्ते पर चलकर परी ताल पहुंचा जा सकता है। ये सफर रोमांचक होने के साथ ही खतरनाक भी है। परी ताल के रास्ते में अंग्रेजों के जमाने का एक पुल भी पड़ता है।