देवों की पावन भूमि उत्तराखंड भिन्न भिन्न प्रकार की संस्कृतियों और परंपराओं को अपनी गोद में समेटे हुए है। गढ़वाल से लेकर कुमाऊं तक अलग अलग क्षेत्रों में अपनी परंपराएं हैं जिनसे उत्तराखंड संपूर्ण होता है। अलग अलग लोगों ने अपनी अनोखी परंपराएं सहेज कर रखी हैं।
आज हम आपको देहरादून के जौनसार-बावर क्षेत्र की ऐसी ही परंपरा के बारे में बता रहे हैं जो कि पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ रही है और आज भी विवाह के समय इन परंपराओं का पालन किया जाता है।

दूल्हे नहीं दुल्हन लाती है बरात
जौनसार-बावर इलाके में हो रही शादी की रस्म इसलिए खास है क्योंकि दुल्हन बारात लेकर दूल्हे के घर जाती है. दुल्हन के साथ आये बारातियों को जोजोड़िये कहा जाता है. विवाह के मौके पर अलग-अलग लोक नृत्य और लोकगीत जैसे सारनदी, मेशाक, जेठा, पटेबाजी. टांडा आदि किये जाते हैं ।
जौनसार बावर क्षेत्र की बोली में विवाह को जोजोड़ा कहा जाता है। जिसका अर्थ है- जो जोड़ा उस भगवान ने बनाया है। जौनसार-बावर क्षेत्र राजधानी देहरादून से करीब 90 किलोमीटर दूरी पर स्थित है।
यहां के लोगों को पांडवों का वंशज माना जाता है। जौनसार-बावर के रीति-रिवाज और परंपराएं भी काफी अलग हैं। यहां पर होने वाले विवाह की चर्चा देशभर में होती है। यहां होने वाले विवाह में दूल्हे वाले नहीं बक्लि दुल्हन वाले बराती होते हैं।
जी हां, यहां बारात लड़के वाले नहीं बल्कि लड़की वाले लेकर आते हैं। है न यह अनोखी बात? यहां विवाह के शुभावसर पर दुल्हन सज धज कर बरात के साथ दूल्हे के घर पहुंचती है। वर्षों से चली आ रही यह परंपरा आज भी कई इलाकों में जारी है।
विवाह कहलाता है जोजोड़ा
इस दौरान पारंपरिक वाद्य यंत्रों पर नाचते-गाते बराती दुल्हन के साथ लेकर दूल्हे के घर पहुंचते हैं । यहाँ के विवाह के अवसर पर यहां लोकगीत मेशाक, जेठा, पटेबाजी. सारनदी टांडा आदि पर भी लोग खूब झूमते हैं।
दूल्हे के घर पर ही पूरे रीति-रिवाजों के साथ शादी की सभी रस्में होती हैं। अगले दिन दुल्हन अपने पति के घर में ही रुक जाती है और बारात लौट आती है।

वहीं लड़की वाले यानी कि बरातियों को जोजोड़िये कहते हैं। विवाह के दिन दुल्हन पक्ष के लोग ढोल-नगाड़ों के साथ दूल्हे के घर बरात लेकर पहुंचते हैं।
लड़की वालों की बरात आने के बाद उनके स्वागत में पकवानों का प्रबंध किया जाता है और उनकी खूब खातिरदारी होती है। यह परंपरा पीढ़ी दर पीढ़ी जौनसार-बावर क्षेत्र में आगे बढ़ रही है । यहाँ आज भी लोगों ने इस अनूठी परंपरा को संजों कर रखा हुआ है।