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नौकरी के लिए आ गए देहरादून, जब नहीं मिली दुर्गा पूजा की छुट्टी, तो यहीं पर सजाने लगे माता का पंडाल

उत्तराखंड में देश के कोने-कोने से लोग आकर बसे हुए हैं। और यही के होकर रह गए हैं। अपने साथ वह अपने राज्य के रीति रिवाज भी साथ लेकर आए हैं। जिससे यहां भी पूरे देश में बनाए जाने वाले लगभग सारे ही त्यौहार इस श्रद्धा के साथ बनाए जाते हैं ऐसा ही एक मशहूर किस्सा है बिंदाल ब्रिज स्थित टैगोर विला में दुर्गा पूजा के शुरुआत का।

बंगाल के लोगों की पहल की बदौलत पिछले 68 वर्षों से दुर्गा बाड़ी में दुर्गा पूजा मनाई जाती रही है। इसके अतिरिक्त, माँ दुर्गा पूजा को समर्पित एक मंदिर का निर्माण लगभग 50 साल पहले किया गया था।

छुट्टी नहीं मिलने पर यहीं पर की दुर्गा पूजा की शुरुआत

दुर्गा बाड़ी के सचिव रमेश सिंह मोदक के अनुसार, 1956 में, कलकत्ता से 15 व्यक्तियों का एक समूह ओएनजीसी के लिए काम करने आया था, लेकिन दुर्भाग्य से, उन्हें दुर्गा पूजा में शामिल होने के लिए छुट्टी नहीं मिल पाई।

फिर उन्होंने दून में ही बिंदाल ब्रिज स्थित टैगोर विला में दुर्गा पूजा मनाने की शुरुआत की। 1972 में, भूमि का अधिग्रहित किया गया, जिसके बाद एक मंदिर का निर्माण किया गया। तब से, दुर्गा पूजा का वार्षिक आयोजन दुर्गा बाड़ी में होता आ रहा है।

बंगाल जैसा ही होता है आयोजन

आपको बता दे इस पूजा में सजावट के लिए उपयोग किए जाने वाले अलंकरण विशेष रूप से बंगाल से प्राप्त किए जाते हैं। कुशल बंगाली कारीगरों को मां दुर्गा की मूर्ति को सजाने का काम सौंपा जाता है।

गौरतलब है कि प्रतिमा के निर्माण में इस्तेमाल की गई मिट्टी भी बंगाल से लाई गई है। सचिव रमेश सिंह मोदक ने विनम्रतापूर्वक उल्लेख किया कि इस वर्ष की दुर्गा पूजा के लिए, 3000 साल पुरानी प्राचीन मूर्ति से प्रेरणा लेते हुए, मां दुर्गा की मूर्ति और पंडाल को जटिल रूप से सजाया गया है। शहर में दुर्गा पूजा की तैयारियां शुरू हो गई हैं, जिसमें पंडालों की साज-सज्जा भी शामिल है।

साथ ही पंडालों की भव्यता बढ़ाने के लिए विशेष पेंटिंग भी की जा रही है. उत्तरायण काली बाड़ी के संयोजक अधीर मुखर्जी ने बताया कि मां दुर्गा के आगमन की तैयारी पूरी लगन से की जा रही है.

लोग हुए भक्ति मय

शारदीय नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा की गई। भक्तों ने माता रानी के मंदिरों की साज-सज्जा पर विशेष ध्यान दिया। श्री शतचंडी पूजा और दुर्गा सप्तशती का पाठ का पवित्र अनुष्ठान हुआ, साथ ही शाम को भजन संध्या के दौरान भक्त माता रानी के मधुर भजनों पर खुशी से नाचने लगे। इसके अलावा, टपकेश्वर मंदिर की गुफा के भीतर भव्य माता वैष्णो देवी को खूबसूरती से सजाया गया था। साथ ही दुर्गा सप्तशती के कुल 24 पाठ किये गये।

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