देवभूमि उत्तराखंड में कई प्राचीन और रहस्यमयी तीर्थ स्थल हैं। जहाँ पर आज ही प्राचीन मान्यताओं के अनुसार पूजा अर्चना की जाती है । इन धार्मिक स्थलों से जुड़ी देवी-देवताओं से जुड़ी कई कहानियां पूरे विश्व में प्रचलित हैं।
उत्तराखंड में ऐसा ही एक रहस्यमयी स्थित है जिसे महासू देवता तीर्थ स्थान के नाम से जाना जाता है।आज हम आपको इसी महासू देवता के बारे में बता रहे हैं जहाँ यह मान्यता है की अगर आप ईमानदारी से कुछ मांगेंगे तो आपको वह जरूर मिलेगा।
न्याय के देवता है भगवान महासू
महासू देवता मंदिर प्रकृति की गोद में स्थित है। लोगों का मानना है कि अगर आप सच्चे भाव से महासू देवता से कुछ मांगेंगे तो भगवान आपकी मनचाही चीज पाने में मदद करेंगे। महासू देवता का मुख्य मंदिर देहरादून में जौनसार बावर के हनोल गांव में स्थित है। कहते हैं इस मंदिर में कई रहस्य छिपे हैं।
महासू देवता का मंदिर महादेव शिव के अवतार ‘महासू देवता’ से जुड़ा हुआ है। यहाँ स्थानीय भाषा में महासू शब्द का अर्थ ‘महाशिव’ माना जाता है ।
जानकारी के अनुसार , देवता महासू को न्याय का देवता माना जाता है। यहाँ मान्यता है की यदि आपका कोई मुकदमा चल रहा और आपको न्याय नहीं मिल रहा है, तो आप हनोल मंदिर में ईमानदारी से 1 रुपये चढ़ा करके न्याय मांगेंगे, आपको निश्चित रूप से यहाँ न्यायपूर्ण निर्णय मिलेगा।
भगवान महासू देवता को न्याय के देवता के रूप में पूजा जाता है। लोग उनसे अदालतों में न्याय पाने में मदद के लिए प्रार्थना करते हैं। और यह महासू देवता उनकी मन की इच्छा पूरी करते हैं .

चार महासू भाई भगवान शिव के रूप हैं। उन्हें सामूहिक रूप से महासू देवता के रूप में भी जाना जाता है। स्थानीय भाषा में महासू महाशिव का अपभ्रंश है।
महासू देवता मंदिर एक पवित्र स्थान है जहां केवल मंदिर के गर्भगृह में केवल पुजारी को ही जाने की अनुमति है। यह जगह आज भी एक रहस्य है और मंदिर के अंदर हमेशा एक ज्योति जलती रहती है। मान्यताओं के अनुसार ये ज्योति कई दशकों से जल रही है ।
राष्ट्रपति भवन से आता है नमक
मान्यताओं के अनुसार द्वापर युग में पांडव लक्षगृह (लाखों का घर) से सुरक्षित निकल कर इसी स्थान पर आए थे। कहा जाता है कि उत्तराखंड के इस पवित्र मंदिर में हर साल राष्ट्रपति भवन से पूजा अर्चना के लिए नमक भी भेजा जाता है।
कई दशकों से इस मंदिर में एक ज्योति जलती है । यह ज्योति कैसे जलती रही है यह आज तक एक रहस्य है। महासू देवता मंदिर में गर्भगृह से भी पानी बहता है, लेकिन आज तक कोई यह नहीं जान पाया कि यह कहां जाता है और कहां से आता है।
मंदिर में यह जल भक्तों को प्रसाद के रूप में दिया जाता है। मंदिर देहरादून से 190 किलोमीटर और मसूरी से 156 किलोमीटर दूर है। यह टोंस नदी के पूर्वी तट पर चकराता के पास हनोल गांव में स्थित है।