जमीन की तालाश में इंसान जंगलों को काट कर प्रकृति से खिलवाड़ कर रहा है। समय के साथ धीरे धीरे प्राकृतिक वन संपदा नष्ट होती जा रही है। एक तरफ जहां लोग अपनी जरूरत और स्वार्थ के लिए पेड़ों को काटते चले जा रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ पहाड़ में कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्होंने जंगल को बचाने के लिए अपना जीवन भी दांव पर लगा दिया है।
आज हम आपको रूबरू करा रहे हैं रुद्रप्रयाग के कोटमल्ला गांव के रहने वाले जगत सिंह चौधरी से , जिन्होंने बीते चार दशकों में एक ऐसे मिश्रित वन को विकसित किया है, जिसमें देवदार, बांज, चीड़ जैसे 70 तरह के पांच लाख से अधिक पेड़ हैं।
रिटायर्ड फौजी हैं जगत सिंह
उत्तराखण्ड के गढ़वाल इलाके में रूद्रप्रयाग जिले के एक छोटे से गांव में रहते हैं । जगत सिंह चौधरी रिटायर्ड फौजी हैं। जगत सिंह साल 1967 में बीएसएफ में शामिल हो गए थे। उन्होंने 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में भी हिस्सा लिया।
साल 1974 की बात है। जगत सिंह घर आए हुए थे। इस दौरान उन्होंने देखा कि गांव की महिलाओं को जलावन और पशुओं के चारे के लिए हर सुबह 8-10 किलोमीटर दूर जाना पड़ रहा है।
कई बार पहाड़ से पैर फिसल जाने के कारण महिलाओं की मौत भी हो जाती थी। इन घटनाओं ने जगत सिंह को झकझोर दिया। उन्होंने सोचा कि अगर गांव के आस-पास ही जलावन और घास मिल जाए तो उन्हें दूर नहीं जाना पड़ेगा।
यही सोचकर जगत सिंह ने अपनी 1.5 हेक्टेयर जमीन पर पौधे लगाना शुरू कर दिया। साल 1980 में रिटायरमेंट के बाद वो पूरी तरह इस मुहिम में जुट गए।
जंगली के नाम से हैं प्रसिद्ध
उन्होंने बीते 4 दशकों में अपनी तीन हेक्टेयर बंजर जमीन पर लाखों पेड़ लगाए। उनकी इस कोशिश से पानी के सूख चुके स्त्रोत फिर से जिंदा हो गए। गांव की महिलाओं को जलावन और चारे के लिए दूसरी जगह नहीं जाना पड़ता।
जिन खेतों को कभी बंजर समझकर छोड़ दिया गया था, अब उनमें भी खेती होने लगी है। प्रकृति से प्यार करने वाले इस रिटायर्ड फौजी को लोग प्यार से जगत सिंह ‘जंगली’ नाम से बुलाते हैं।
रिटायरमेंट में मिली रकम हरियाली लाने पर की खर्च
रिटायरमेंट के वक्त मिली रकम का बहुत बड़ा हिस्सा उन्होंने गांव में हरियाली लाने पर खर्च किया। फिलहाल उनका जंगल 3 हेक्टेयर से अधिक दायरे में फैला हुआ है, जिसमें पानी को जमा करने के लिए 200 से भी अधिक छोटे बांध बने हैं। इस जंगल में रिंगाल बड़े पैमाने पर मिलते हैं, जिससे उत्पाद तैयार किए जा रहे हैं।
73 वर्षीय जगत 3 बेटियों और एक बेटे के पिता हैं। उनके बेटे राघवेंद्र को भी जंगल से लगाव है। पर्यावरण विज्ञान से एमएससी करने के बाद वो पिता की मुहिम को आगे बढ़ा रहे हैं।
जगत सिंह को पर्यावरण के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए इंदिरा गांधी वृक्ष मित्र पुरस्कार और आर्यभट्ट पुरस्कार जैसे कई पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है।