जानिए क्या है उत्तराखंड का सुरकंडा मंदिर शक्तिपीठ का रहस्य , माता सती का है यहाँ से ये गहरा संबंध
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Surkanda Devi Temple: जानिए क्या है उत्तराखंड का सुरकंडा मंदिर शक्तिपीठ का रहस्य , माता सती का है यहाँ से ये गहरा संबंध

Surkanda Devi Temple: नवरात्रि में माता के दर्शनों को श्रद्धालुओं में खासा उत्साह नजर आता हेैं। देवभूमि उत्तराखंड में भी माता के कई शक्तिपीठ हैं। इनमें से एक है सुरकंडा देवी मंदिर। मान्यता है कि नवरात्रि व गंगा दशहरे के अवसर पर इस मंदिर में देवी के दर्शन से मनोकामना पूर्ण होती है। नवरात्रि में यहां जबरदस्त भीड़ नजर आती है।

यह मंदिर देवी दुर्गा को समर्पित है जो कि नौ देवी के रूपों में से एक है। यह मंदिर 51 शक्ति पीठ में से है। इस मंदिर में देवी काली की प्रतिमा स्थापित है। केदारखंड व स्कंद पुराण के अनुसार राजा इंद्र ने यहां मां की आराधना कर अपना खोया हुआ साम्राज्य प्राप्त किया था।

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माता सती का सिर गिरने से कहलाया सिरकंडा

टिहरी जिले के जौनुपर के सुरकुट पर्वत पर सुरकंडा देवी  का मंदिर है।  सूरी चंबा मोटर मार्ग पर धनोल्टी से 8 कि०मी० की दूरी पर है। नई टिहरी से 41 कि०मी० की दूरी पर चंबा मसूरी रोड पर कद्दुखाल स्थान है जहां से लगभग 2.5 कि०मी० की पैदल चढाई कर सुरकंडा माता के मंदिर तक पहुंचा जाता है। हालांकि अब यहां रोपवे शुरू हो गया है।(Surkanda Devi Temple)

जानिए क्या है उत्तराखंड का सुरकंडा मंदिर शक्तिपीठ का रहस्य , माता सती का है यहाँ से ये गहरा संबंध
सुरकंडा देवी  का मंदिर

जिस स्थान पर माता सती का सिर गिरा वह सिरकंडा कहलाया मान्यता है कि सती तपस्वी भगवान शिव की पत्नी एवं पौराणिक राजा दक्ष की पुत्री थी। दक्ष को अपनी पुत्री के पति के रूप में शिव को स्वीकार करना पसंद नहीं था।

 

राजा दक्ष द्वारा सभी राजाओं के लिए आयोजित वैदिक यज्ञ में भगवान शिव के लिए की गई अपमान जनक टिप्पणी को सुनकर सती ने अपने आप को यज्ञ की ज्वाला में झोंक  दिया।

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भगवान शिव को जब पत्नी की मृत्यु का समाचार मिला तो वो अत्यंत दुखी और नाराज हो गए और सती माता के पार्थिव शरीर को कंधे पर रख हिमालय की और निकल गए।

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भगवान शिव के गुस्से को एवं दुःख को समाप्त करने के लिए एवं सृष्टी को भगवान शिव के तांडव से बचाने के लिए विष्णु भगवान ने अपने सुदर्शन चक्र को सती के नश्वर शरीर को धीरे धीरे काटने को भेजा। (Surkanda Devi Temple)

सुरकंडा देवी - माँ सती को समर्पित एक स्थान (A Visit to Surkanda Devi Temple)

सती के शरीर के 51 भाग जहां जहां गिरे वहां पवित्र शक्ति पीठ की स्थापना हुयी और जिस स्थान पर माता सती का सिर गिरा वह सिरकंडा कहलाया जो बाद में सुरकंडा नाम से प्रसिद्ध हो गया।

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सुरकंडा देवी मंदिर की एक खास विशेषता है कि मंदिर में दर्शन के लिए आने वाले लोगों को प्रसाद के रूप में रोंसाली पत्ते प्राप्त होते हैं। माना जाता है कि इन पत्तों में विशेष औषधीय गुण होते हैं और यह भी माना जाता है कि इन्हें घर में रखने से सुख-समृद्धि आती है। (Surkanda Devi Temple)

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रोपवे से जाकर कर सकते हैं दर्शन

मां सुरकंडा देवी मंदिर में अब श्रद्धालु रोपवे का आनंद ले सकते हैं सिद्धपीठ मां सुरकंडा देवी मंदिर में अब श्रद्धालु रोपवे का आनंद ले सकते हैं। सुरकंडा देवी मंदिर जाने के लिए लगभग 05 करोड़ की लागत से बने रोपवे की लंबाई 502 मीटर है। इसकी क्षमता लगभग 500 व्यक्ति प्रति घंटा है।

जानिए क्या है उत्तराखंड का सुरकंडा मंदिर शक्तिपीठ का रहस्य , माता सती का है यहाँ से ये गहरा संबंध
रोपवे से जाकर कर सकते हैं दर्शन

सुरकंडा देवी मंदिर रोपवे सेवाए उत्तराखंड के राज्य के गठन होने के बाद पहली महत्वपूर्ण रोपवे परियोजना है जिसका निर्माण राज्य पर्यटन विभाग द्वारा किया गया है।

स्वर्ग सम्मान है मां सुरकंडा देवी की यात्रा, जीवन में इस स्वर्ग को नहीं देखा तो फिर क्या देखा? - Raibaar Uttarakhand

सुरकंडा रोपवे सेवा शुरू होने से श्रद्धालु कद्दूखाल से मात्र 5 से 10 मिनट में सुगमता पूर्वक साल भर मां सुरकंडा देवी के दर्शन कर सकेंगे। इसका किराया आने जाने का 177 रुपए तय किया गया है। (Surkanda Devi Temple)

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