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अल्मोड़ा के इस प्राचीन मंदिर में वास है स्वयंभू शिव जी का , दाल-चावल के भोग की परंपरा

उत्तराखंड को महादेव का देवस्थल कहा जाता है । यहाँ महादेव कई रूपों में विराजित हैं । इन्ही में से  एक धाम है अल्मोड़ा से तकरीबन 40 किलोमीटर की दूर सोमनाथ मंदिर ।  ऐसी मान्यता है की यहां पर स्वयंभू शिवलिंग के रूप में भगवान शिव विराजमान हैं.

ऐसा माना जाता है कि 12वीं सदी में अल्मोड़ा में स्थित सोमनाथ मंदिर का निर्माण हुआ था. यह मंदिर में भक्तों को अद्भुत शांति की अनुभूति प्रदान करता है. इस सोमनाथ मंदिर में भगवान गणेश, मां दुर्गा, उमा-महेश, भगवान विष्णु,ब्रह्मा समेत अन्य कई देवी-देवताओं की बहुत ही प्राचीन और अद्भुत  मूर्तियां देखने को मिलती हैं. अगर जानकारों की माने तो यहाँ पर स्थित मूर्तियों को 12वीं से 15वीं सदी के बीच का बताया जाता है.

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  भगवान् को लगता है दाल और चावल का भोग

प्राचीन सोमनाथ मंदिर की मान्यता भी अद्भुत है. यहां पर स्थानीय लोगों के साथ-साथ अन्य जगहों से भी श्रद्धालु पूजा अर्चना के लिए पहुंचते हैं. मंदिर के पुजारी हेमंत गोस्वामी के अनुसार  यहां जो भी श्रद्धा से भगवान से मन्नत मांगता है, उसकी मनोकामना अवश्य पूरी होती है. और जब लोगों की मनोकामना पूरी हो जाती है, तो वे यहां पुनः आकर भगवान को दाल-चावल का भोग लगाते हैं. और  फिर  40 ब्राह्मण परिवारों के लोग प्रसाद  खिलाने की मान्यता है । 

अल्मोड़ा के इस मंदिर में धरती से प्रकट हुए थे भोलेनाथ, स्वयंभू शिवलिंग के दर्शन को दूर-दूर से आते हैं भक्त - betaleshwar temple almora has swayambhu shivlinga localuk ...

आपको बता दें सोमनाथ मंदिर के कपाट सुबह 4:00 बजे से लेकर दोपहर 12 बजे तक के लिए खुले रहते हैं. और 12:00 बजे से लेकर 4:00 बजे तक कपाट बंद रहते हैं. शाम 4:00 बजे कपाट फिर खुलते हैं और रात को 8:00 बजे इन्हें बंद कर दिया जाता है. यहाँ  के पुजारी द्वारा प्रतिदिन करीब 11 बजे भगवान भोलेनाथ शिव जी  को भोग लगाया जाता है.

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स्वमं प्रकट हुए  हैं शिव

ऐसा मानाजाता है यहाँ पर विराजित शिव स्वमं प्रकट हुए हैं ।  कोलकाता से आए श्रद्धालु सौरभ ने बताया कि सोमनाथ मंदिर में आकर उन्हें अलग तरह की शांति की अनुभूति हुई है. यह काफी प्राचीन मंदिर है. वैसे भी वह भगवान शंकर के भक्त हैं और मंदिर आकर उन्हें काफी अच्छा महसूस हो रहा है.

अल्मोड़ा के इस मंदिर में स्वयंभू शिवलिंग, भगवान को लगता है दाल-चावल का भोग

स्थानीय निवासी रमेश भारती ने बताया कि इस मंदिर का निर्माण कत्यूरी वंश के राजा सोमचंद द्वारा कराया गया था. इस मंदिर में हर महीने हजारों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं. यहां सच्चे मन से जो भी मुराद मांगता है, उनकी मनोकामना पूरी होती है.

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