उत्तराखंड की इन हिन्दू बेटियों ने दी सामाजिक सौहार्द की मिसाल, ईदगाह को दी करोड़ों की जमीन
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उत्तराखंड की इन हिन्दू बेटियों ने दी सामाजिक सौहार्द की मिसाल, ईदगाह को दी इतने करोड़ों की जमीन

अक्सर  धार्मिक उन्माद, सांप्रदायिक तनाव और हिंदू मुस्लिम टकराव की खबरें जहां शांति और सौहार्द्र का माहौल बिगाड़ रही हैं, वहीं उत्तराखंड से दो बहनों ने सांप्रदायिक सद्भाव की अनूठी मिसाल कायम की है. इन  हिंदू बहनों ने ईदगाह के विस्तार के लिए एक बड़ी ज़मीन दान में दे दी.

आज हम आपको उत्तराखण्ड के उधमसिंह नगर ज़िले के काशीपुर की एक अनोखी घटना के बारे बता रहे हैं, यहाँ पर ईदगाह के लिए 2 एकड़ से ज़्यादा ज़मीन दान करि है . आपको बता दें इन बहनों ने यह कदम इसलिए उठाया ताकि अपने स्वर्गीय पिता की अंतिम इच्छा पूरी कर सकें.

उत्तराखंड की इन हिन्दू बेटियों ने दी सामाजिक सौहार्द की मिसाल, ईदगाह को दी करोड़ों की जमीन

डेढ़ करोड़ रुपये से ज़्यादा है ज़मीन की कीमत

काशीपुर में सांप्रदायिक सद्भाव की मिसाल 62 वर्षीय अनिता और उनकी 57 वर्षीय बहन सरोज ने रची है . दोनों बहनों के इस कदम की चहुंओर तारीफ हो रही है. 2.1 एकड़ से ज़्यादा इस ज़मीन की कीमत डेढ़ करोड़ रुपये से ज़्यादा की है, जो ईदगाह को सौंपी गई. अनिता और सरोज के भाई राकेश रस्तोगी के हवाले से एक खबर में कहा गया, ‘मेरे पिता सांप्रदायिक सद्भावना में विश्वास रखते थे.

वहीं, ईदगाह कमेटी के हसीन खान ने लाला को ‘बड़े दिलवाला’ करार देकर कहा, ‘मेरे पिता और लाला अच्छे दोस्त थे और उन्होंने हम सबको सांप्रदायिक एकता का पाठ पढ़ाया. लाल जब थे, तब भी बढ़ चढ़कर दान और सेवा करते थे.’ यह कहकर खान ने इस इलाके को सांप्रदायिक समरसता का गढ़ भी बताया.

 दोनों  बहनों के लिए मांगी गई दुआ

अनिता और सरोज ने अपने पिता की अंतिम इच्छा पूरी करने के लिए ईदगाह के लिए ज़मीन सौंपी, तो मुस्लिम समुदाय ने उन्हें बदले में बड़ा सम्मान दिया. एक खबर के अनुसार मंगलवार को ईद के मौके पर दोनों बहनों के लिए दुआएं मांगी गईं.

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यही नहीं, कई लोगों ने अपने वॉट्सएप प्रोफाइल पर दोनों बहनों की तस्वीर लगाकर उनका शुक्रिया अदा किया.

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साल 2003 में 80 साल की उम्र में परलोक सिधारे लाल बृजनंदन रस्तोगी काशीपुर में किसान थे. उनकी ज़मीन का हिस्सा उनकी बेटियों को मिला था. उनके निधन के लंबे समय के बाद परिवार और रिश्तेदारों से बेटियों को पता चला कि उनके पिता ज़मीन का एक हिस्सा ईदगाह को देना चाहते थे, लेकिन बेटियों से कहने में संकोच करते थे.

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यह जानने के बाद मेरठ में रहने वाली सरोज और दिल्ली में रहने वाली अनिता ने बातचीत की और हाल ही में  ज़मीन सौंपने की कागज़ी कार्रवाई पूरी कर दी गयी है .

 

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