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उत्तराखंड के इस बेटे ने ऊँचा किया देवभूमि का मान , पिता के निधन के बाद भी सीडीएस परीक्षा में हासिल की दूसरी रैंक

उत्तराखंड के युवा जीवन के हर क्षेत्र में बहुत अच्छा कर रहे हैं। विशेष रूप से, सेना उनके लिए एक मजबूत क्षेत्र है, जहां कई युवा राष्ट्रीय परीक्षाओं में उच्च स्थान प्राप्त करते हैं। आज हम आपको उत्तराखंड के एक ऐसे युवक से मिलवाएंगे, जिसने सीडीएस परीक्षा में काफी ऊंचे अंक हासिल किए हैं।

उत्तराखंड के इस बेटे ने ऊँचा किया देवभूमि का मान , पिता के निधन के बाद भी सीडीएस परीक्षा में हासिल की दूसरी रैंक

जी हां.. हम बात कर रहे हैं सुमित भट्ट की जो  उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के खटेड़ा गांव के रहने वाले हैं। सीडीएस परीक्षा में उनका चयन हुआ और उन्होंने अखिल भारतीय स्तर की परीक्षा में द्वितीय स्थान प्राप्त किया।

उत्तराखंड के इस बेटे ने ऊँचा किया देवभूमि का मान , पिता के निधन के बाद भी सीडीएस परीक्षा में हासिल की दूसरी रैंक
image credit to physics wallah

 

सुमित की इस अद्भुत उपलब्धि से उनके परिवार और दोस्तों में अपार खुशी का माहौल है, उनके गृहनगर पिथौरागढ़ जिले के खटेड़ा में भी खुशी की लहर दौड़ गई है। सैन्य परिवार से ताल्लुक  रखने वाले सुमित के माता और पिता दोनों ही सेना में कार्यरत हैं . आपको बता दें की सुमित के पिता देहांत हो गया है .

उत्तराखंड के इस बेटे ने ऊँचा किया देवभूमि का मान , पिता के निधन के बाद भी सीडीएस परीक्षा में हासिल की दूसरी रैंक

लेकिन सुमित ने अपनी कड़ी मेहनत के दम पर पूरे देश में  दूसरी रैंक हासिल की।  सुमित के पिता बसंत बल्लभ भट्ट का काफी समय पहले निधन हो गया था।

उत्तराखंड के इस बेटे ने ऊँचा किया देवभूमि का मान , पिता के निधन के बाद भी सीडीएस परीक्षा में हासिल की दूसरी रैंक

बसंत एक पूर्व सैनिक थे और सुमित का पालन-पोषण उनकी मां दीपा भट्ट ने किया। इस वजह से  सुमित की  माता दीपा भट्ट को परिवार की  काफी मुश्किल स्थिति का सामना करना पड़ा है।

उत्तराखंड के इस बेटे ने ऊँचा किया देवभूमि का मान , पिता के निधन के बाद भी सीडीएस परीक्षा में हासिल की दूसरी रैंक

सुमित की मां दीपा फिलहाल सेना की आशा किरण में कार्यरत हैं। सुमित ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा जेबी मेमोरियल मानस अकादमी, पिथौरागढ़ से पूरी की है. सुमित की माँ के अनुसार उन्हें अपने बेटे इस  उपलब्धियों पर बहुत गर्व है। साथ ही सुमित ने अपनी इस सफलता का  श्रेय अपने माता-पिता, शिक्षकों को दिया  हैं।

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