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उत्तराखंड में 12 साल बाद खिला दुर्लभ जोंटिला का फूल, जानिये 25-27 अक्टूबर को कहाँ होगा ख़ास आयोजन

नैनीताल :  कुदरत ने उत्तराखंड को अपनी अनमोल नेमतों से नवाजा है। प्राकृतिक सैंदर्य और वनस्पतियों का धनि है ये राज्य।

इन दिनों नैनीताल की खूबसूरत वादियों में भी प्रकृति का एक ऐसा शानदार तोहफा देखने को मिल रहा है, जिसे देखने के लिए 12 साल तक इंतजार करना पड़ता है।

इस साल यहाँ कंडाली या जोंटिला का फूल खिल उठा है और अपनी सुंदरता चारो और बिखेर रहा है। इसका बॉटनिकल नाम आर्टिका डायोसिया है।

12 साल में खिलने वाला ये दुर्लभ फूल इस साल नैनीताल में चारखेत, हनुमानगढ़ी के समीप कैमल्स बैक पहाड़ी के नीचे और बल्दियाखान से पहले कई जगहों पर ये खूबसूरत जोंटिला का फूल अपनी सुंदरता से सराबोर कर रहा है।

जानिये इससे जुडी कुछ रोचक बातें : 

दुर्लभ फूल की खोज

पर्यावरणविद पद्मश्री अनूप साह के अनुसार यह जोंटिला का फूल उन्होंने सबसे पहले 1975 में देखा था। फिर 1987 में, 1999 में, 2011 में भी यह रिपोर्ट किया गया और अब इस साल 2023 में 12 सितंबर को उन्होंने इस फूल का पांचवां चक्र देखा।

जोंटिला का फूल खिल जिसका बॉटनिकल नाम आर्टिका डायोसिया है इस पौधे की रिपोर्ट 1973 में देहरादून के मसूरी में डॉ. एस विश्वास ने की था, वहीँ पिथौरागढ़ जिले के उच्च हिमालयी क्षेत्र चौंदास घाटी में साल 2000 में डॉ. एसएस सामंत ने इसके बारे में  रिपोर्ट किया था।

फूल की विशेषताएँ और महत्वपूर्ण उपयोग:

जोंटिला या कंडाली, हिमालय के मध्य ऊंचाई वाले क्षेत्रों की दक्षिणी ढालों में पाया जाने वाला एक विशिष्ट बहुवर्षीय शाकीय पौधा है, जिसका जीवन चक्र 12 साल में पूरा होता है।

कंडाली का पौधा कई बीमारियों के इलाज में लाभदायक है। इसका शहद बहुत पौष्टिक होता है और इस पौधे का उपयोग कईं बीमारियों के इलाज में काफी फायदेमंद साबित होता है।

पर्यावरणविद पद्मश्री अनूप साह के अनुसार, इस पौधे की जड़ अतिसार रोग के उपचार में प्रयुक्त होती है और इसकी डंडी स्थानीय समुदाय रस्सी व जाल बनाने में उपयोग में करते आ रहे हैं।

खास आयोजन:

पिथौरागढ़ की चौंदास घाटी में तो जनजाती समुदाय द्वारा कंडाली उत्सव भी मनाया जाता है, इस साल यह आयोजन 25-26 व 27 अक्टूबर को तय है।

पिछली बार ये उत्सव साल 2011 में मनाया गया था, इस त्यौहार का आयोजन महिलाएं करती हैं और ये एक सप्ताह तक मनाया जाता है, हर घर में आटे और जौ के मिश्रण से शिवलिंग बनाया जाता है और उसकी पूजा की जाती है। गाओं के लोग पारम्परिक वेशभूषा पहन ढोल नगाड़ो के साथ इस त्यौहार को मानते हैं। 

यह दुर्लभ फूल उत्तराखंड के प्राकृतिक सौन्दर्य और प्राकृतिक वनस्पति के महत्व को और भी बढ़ा देता है, और यह दिखाता है कि हमारे प्राकृतिक संसाधनों का सही तरीके से संरक्षण करना कितना महत्वपूर्ण है।

इसका अद्वितीय सौन्दर्य और वैज्ञानिक महत्व:

इस फूल की खासियत यह है कि यह समुद्र तल से पांच हजार से साढ़े सात हजार फिट ऊंचाई वाले स्थानों में उगता है, और इसकी मौजूदगी कश्मीर से लेकर नेपाल और भूटान तक देखी गई है।

उत्तराखंड में फिर से इस दुर्लभ फूल के खिलने के अध्भुत दृश्य का लोग आनंद ले रहे हैं।

यह विशेष फूल हमें हमारे प्राकृतिक धरोहर की मूल्य को समझाता है और हमें इन धरोहरों का संरक्षण करने का सकारात्मक दृष्टिकोण रखने के लिए प्रेरित करता है।

 

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